हरियाणा की राजनीति का खेल और खिलाडिय़ों से गहरा ताल्लुक
- By Vinod --
- Friday, 06 Sep, 2024
Haryana's politics has a deep connection with sports and players
Haryana's politics has a deep connection with sports and players- चंडीगढ़ (साजन शर्मा)I हरियाणा की राजनीति में खेल और खिलाडिय़ों का राजनीति से गहरा तालुल्क है। यानि खिलाड़ी खेल के मैदान पर तो खेलते रहे हैं लेकिन राजनीति में भी उन्होंने कई दॉव पेंच आजमाए। इसमें कईयों को बड़ी सफलता तो कई को विफलता हाथ लगी है। मशहूर पहलवान विनेश फोगट और बजरंग पुनिया के राजनीति में आने की बढ़ती अटकलों के बीच एक बार फिर खेल और खिलाडिय़ों का राजनीतिक का सफरनामा जगजाहिर हो रहा है।
केवल हरियाणा ही नहीं बल्कि देश में भी खेल और राजनीति का आपस में गहरा संबंध है। प्रभावशाली राजनेता, उनके रिश्तेदार या सहयोगी खेल महासंघों पर पूरी तरह से हावी हैं। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड पर सदा से राजनीतिज्ञों व उनके परिवारों का आधिपत्य रहा है। खेल करियर को खत्म करने के बाद सार्वजनिक जीवन में आने वाले खिलाडिय़ों की बढ़ती संख्या इस तथ्य पर मोहर लगाती है। खिलाडिय़ों से राजनेता बने खिलाडिय़ों में क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू, गौतम गंभीर, मोहम्मद अज़हरुद्दीन, कीर्ति आज़ाद, चेतन चौहान, हॉकी खिलाड़ी संदीप सिंह, पैरा-एथलीट देवेंद्र झाझरिया, निशानेबाज राज्यवर्धन सिंह राठौड़ और करणी सिंह, पहलवान बबीता फोगाट और योगेश्वर दत्त, फुटबॉलर कल्याण चौबे और प्रसून बनर्जी और बॉक्सर विजेंदर सिंह जैसे नाम शामिल हैं।
विनेश और बजरंग अगर चुनावी मैदान में उतरते हैं तो वे राजनीति को दूसरे करियर के तौर पर चुनने वाले न तो पहले खिलाड़ी होंगे और न ही आखिरी। अपनी इस नई राजनीतिक पारी में हालांकि, वह सफल होंगे या नहीं यह अन्य कई कारकों पर निर्भर करता है। खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करने से खिलाडिय़ों को सार्वजनिक प्रसिद्धि और तत्काल पहचान का अतिरिक्त लाभ मिलता है। कमोबेश फिल्मी सितारों के मामले में भी ऐसा ही है लेकिन राजनीति में शामिल होने वाले सभी खिलाडिय़ों को सफलता मिली हो, ऐसा भी नहीं है।
विनेश और बजरंग ने बुधवार को कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के साथ बैठक की। आसार लगाये जा रहे हैं कि आगामी हरियाणा विधानसभा चुनाव में वह राजनीति के मैदान में किस्मत आजमाएंगे। यदि कांग्रेस उन्हें मैदान में उतारती है, तो विनेश और बजरंग की न्याय के लिए योद्धा की छवि पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। दोनों नाम पिछले साल हरियाणा के पहलवानों द्वारा पूर्व कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भाजपा नेता बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ किए गए आंदोलन में सबसे आगे थे। बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों के यौन उत्पीडऩ का आरोप लगा था। इसके अलावा, हाल ही में पैरिस ओलंपिक में पदक से चूकने के बाद विनेश के प्रति जनता की जबरदस्त सहानुभूति है जिसे भुनाने की फिराक में कांग्रेस पार्टी है। कांग्रेस को यह दॉव उल्टा भी पड़ सकता है। रोहतक में सर्वखाप पंचायत ने पेरिस में 50 किलोग्राम महिला वर्ग के फाइनल से पहले अयोग्य ठहराए जाने के बाद पहलवान विनेश को भारत लौटने पर स्वर्ण पदक से सम्मानित किया था। यानि वह जाट बहुल क्षेत्रों में अपार लोकप्रियता का फायदा उठा सकती हैं लेकिन गैर-जाट-प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में भाजपा नेता उसकी उम्मीदवारी को इस बात का सबूत बता सकते हैं कि बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के पीछे कांग्रेस थी। वह जनता को यह दिखाने की कोशिश करेंगे देखो, हम तो पहले ही कह रहे थे कि ये राजनीति में घुसने की साजिश है।
हर खिलाड़ी जीता हो, ऐसा नहीं
खिलाडिय़ों को आसानी से पहचान मिलती है जिसकी बदौलत वह और सार्वजनिक ध्यान खींचते हैं, लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ है कि वे वोट पाने में सफल नहीं हो पाए। 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में, कांग्रेस और इनेलो के गढ़ पिहोवा में भाजपा के संदीप सिंह ने जीत दर्ज की। 2012 में लंदन ओलंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त बड़ौदा में कांग्रेस के कृष्ण हुड्डा से हार गए। कृष्ण हुड्डा की मृत्यु के बाद, भाजपा ने उन्हें 2020 के उपचुनाव में फिर से मैदान में उतारा, लेकिन पहलवान फिर से कांग्रेस के इंदुराज नरवाल से हार गये। 2019 में, विनेश की चचेरी बहन बबीता कुमारी, जो एक ओलंपियन पहलवान हैं, दादरी में कांग्रेस के बागी सोमवीर सांगवान से हार गई थी।